अचलेश्वर धाम का इतिहास
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और मां पार्वती ने गणेश जी और कार्तिक जी में से एक को उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय किया। इस के बारे में गणेश और कार्तिक जी को अवगत कराया ,और कहा कि जो भी तीनों लोकों की परिक्रमा करके पहले कैलाश पहुंचेगा ,उसे अपना उत्तराधिकारी बनाएंगे।
कार्तिक जी मोर पर सवार होकर आकाश मार्ग से तीनों लोकों का चक्कर लगाने निकले .गणेश जी चूहे पर सवार होकर निकले तो गणेश जी को रास्ते में नारद जी ने मिले. गणेश जी ने नारद जी को भगवान शिव और पार्वती के निर्णय के बारे में बताया। नारदजी ने कहा भगवान शिव और मां पार्वती के चरणों में तीनों लोक हैं। ऐसा सुनकर गणेश जी वापिस कैलाश चले गए और अपने माता-पिता की परिक्रमा करके प्रणाम किया। भगवान गणेश की बुद्धि से प्रसन्न होकर भगवान शिव और पार्वती मां ने उन्हें उत्तराधिकारी बना दिया।
नारद जी कार्तिक जी पास पहुंचे और उन्हें सारा किस्सा सुनाया यह सुनकर कार्तिक नाराज हो गए और जहां थे वहीं अचल हो गए। यह वही स्थान है .उनको मनाने के लिए 33कोटि भाव प्रकार के देवी देवता इस जगह पर आ पहुंचे। लेकिन कार्तिक जी ने यहीं रहने का निर्णय बताया तो भगवान शिव ने उनको अचलेश्वर महादेव का नाम देकर नवमी का अधिकारी घोषित कर दिया। और कहा कि यहां नवमी का पर्व मनाया जाएगा भगवान शिव ने वरदान दिया कि हर साल 33 प्रकार के देवी देवता यहां पर आएंगे और जिन भी भक्तों की जो भी कामना होगी वह यहां पर पूरी होगी।
मान्यता है कि जो भी भक्त 40 दिन तक लगातार सच्चे मन से पूजा-अर्चना करता है .उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। यहां पर एक सरोवर भी है और माना कि सरोवर में स्नान करने वालों की भी हर मन्नत पूरी होती है। दिवाली से 9 दिन बाद जहां विशाल मेला लगता है। सरोवर के बीचों बीच भगवान शिव का मंदिर हैऔर किनारे पर कार्तिक जी का मंदिर है।