होली का दहन इस लिए मानाया जाता है इस अच्छाई की जीत हुई थी होली की दहन कि कथा है कि एक राज्य था जिसका राजा हरिनाकशव था उसको वरदान था कि वह ना ही दिन में मरेगा ना ही रात में ना ही अंदर मरेगा ना ही बाहर मरेगा तब उसने अपनी प्रजा में ऐलान कर दिया कि आज से मेरी पूजा ही हाई गी जो व्यक्ति मेरी बात नहीं मानेगा उसको मार दिया जाएगा कुछ महीने बाद उनके राज्य में एक राजकुमार का जन्म हुआ जिसका नाम पहि लाद रखा वह हमेशा विष्णु भगवान की भक्ति करता था जब उसके पिता को पता चला कि उसका पुत्र विष्णु की पूजा करता है यह जानकर उसने अपना मन माना लिया की वह अपने पुत्र का अंत कर देगा उसने अपने पुत्र को पर्वत से नीचे गिरने कि भी कोशिश की जानवर को भी डाल ने की भी कोशिश पर विफल हो गया वह राजा बहुत परेशान था
तब उसकी बहन अपने भाई को मिलने आई उसनेे अपनी परेशानी अपनी बहन को बताई तब उसने कहा कि मैं आपके पुत्र को लेकर जलतीं चीता में बैठ कर उसका अंत हो जाएगा मुझे वरदान है कि मुझे अग्नि जला नहीं सकती अगले दिन वह उसके पुत्र को लेकर चीता में बैठ गई लेकिन पहिलाद को कुछ भी नहीं हुआ पर उसकी बहन चीता मे जल गई उस ही दिन भगवान विष्णु ने नृसिंह का शारभा अवतार लेकर भगवा उसेन विष्णु का गुसा ठंडा किया इस लिए होली के एक दिन पहले होलिका का दहन किया जाता है
अगले दिन इस लिए सभी लोग रंगो से होली ने मानते है रंगो की होली सबसे पहले श्री कृष्ण जी सा होई थी