कौन थे महर्षि सुश्रुत
महर्षि सुश्रुत का जीवन परिचय – एक नज़र | |
नाम | महर्षि सुश्रुत |
जन्म | 800 ईसा पूर्व |
पूर्वाधिकारी | धनवंतरी |
उत्तराधिकार | चरक |
रचना | सुश्रुत संहिता |
प्रसिद्धि का कारण | शल्य चिकित्सा की प्रवर्तन |
निपुणता | मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, डिलीवरी ऑपरेशन आदि |
सुश्रुत शल्य चिकित्सा में बहुत निपुण थे वह अपने छात्रों को प्रयोग और क्रियाविधि पढ़ाते थे। इंसानों का इलाज करने से पहले वह फल-सब्जियों और मुर्दा पशुओं पर परीक्षण करते थे। यह दर्शाता है की प्राचीन समय में ही टेस्ट और एक्सपेरिमेंट की नींव डाली गई थी और सुश्रुत इसके अग्रणी थे। भारत में वैदिक सभ्यता के युग में ही आयुर्वेद और चिकित्सा शास्त्र बहुत उन्नत हो गया था।
शल्य चिकित्सा मानवी विकास के लिए बहुत जरूरी है इसलिए उन्होंने इसके विकास पर ध्यान दिया। उनके ग्रन्थ में शल्यक्रियाओं (Surgery) की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन मिलता है।
औषधियों पर शोध
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को बढ़ाने और विभिन्न तरह की औषधियों की खोज में भी सुश्रुता ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। गुडूची, शतावरी, ब्राह्मी जैसी कुछ उपयोगी जड़ी-बूटियों के प्रयोग बताये।
रसायन शास्त्र
चिकित्सा शास्त्र में विभिन्न तरह के रोगों के उपचार के लिए उपयोग होने वाली औषधियों के रासायनिक गुणधर्म के बारे में उन्होंने अपने ग्रन्थ में जानकारी दी। और चिकित्सकों के साथ-साथ आम लोगों को भी इस सम्बन्ध में जागरूक किया।
चिकित्सा विज्ञान को नया आयाम
सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा का प्रवर्तन कर न केवल लाइलाज लगने वाले रोगों का इलाज सरल किया बल्कि विज्ञान के सिद्धांत का उपयोग कर मानवीय जीवन को अधिक सार्थक बनाया और वो भी उस दौर में जब तकनीक का नाम-ओ-निशान नहीं था।
सुश्रुत संहिता का महत्व
सुश्रुत संहिता आयुर्वेद और शल्यचिकित्सा का महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमे 184 अध्याय है। इस ग्रन्थ को आठवीं शताब्दी में अरबी भाषा में ‘किताब-ए-सुस्रुद’ नाम से अनुवाद किया गया। यह ग्रन्थ शल्यचिकित्सा और रोगों के सम्बन्ध में बहुत महत्वपूर्ण और विस्तृत जानकारी देता है इसमें आठ प्रकार की शल्य क्रिया का वर्णन मिलता है। इसके साथ ही इस संहिता में 1120 रोगो, 700 औषधीय पौधों, खनिजो पर आधारित 64 प्रक्रिया, और जंतु पर आधारित 57 विधियों का उल्लेख मिलता है जिससे इस ग्रन्थ की व्यापकता समझ आता है। इस संहिता को दो भागो में विभक्त किया हुआ है पूर्वतंत्र तथा उत्तरतंत्र। पूर्वतंत्र में 120 जबकि उत्तरतंत्र में 64 अध्याय है।
शल्य क्रिया के वर्णित आठ प्रकार
छेद्य – छेदन हेतु उपयोग
भेद्य – भेदने के लिए उपयोग
लेख्य- अलग करना
वेध्य – नुकसानदेह द्रव्य को शरीर से निकलने के लिए
ऐष्य – नाड़ी में घाव का पता लगाने हेतु
अहार्य – शरीर को क्षति करने वाले उत्पत्तियों को निकालने हेतु
विश्रव्य – द्रव्य बाहर लाने के लिए
सीव्य – घाव को सिलने हेतु
सुश्रुत संहिता बहुत उपयोगी ग्रन्थ है, इसमें शल्य क्रिया के महत्वपूर्ण आयामों को बड़ी बारीकी से बताया गया है। जैसे शल्य क्रिया से पहले रोगी को बेहोश करना ताकि उसे दर्द कम हो। इसके लिए सुरापान (मदिरा का सेवन) कराया जाता था। इस तरह यह संज्ञाहरण यानी anesthesia का काम करता था और सुश्रुत को संज्ञाहरण का पितामह भी कहा जाता है
इसके साथ ही ये भी जिक्र मिलता है की औजारों का इस्तेमाल करने से पहले उसे गर्म किया जाता था ताकि उस पर लगे कीटाणु समाप्त हो जाए। इसका मतलब उस ज़माने में भी उन्हें जीवाणु जैसे सूक्ष्म जीव की जानकारी थी। ये ज्ञान तो सच में अद्भुत था।
इस लेख में हमने आपको maharshi sushruta biography in hindi को विस्तार पूर्वक बताया और साथ ही सुश्रुत संहिता की विशेषताओं से भी अवगत कराया। सुश्रुत महज सर्जन नहीं बल्कि एक बहुत अच्छे अध्यापक भी थे जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया।
आज की सर्जरी कहीं न कहीं से उन्ही की चिकित्सा पद्धति का विस्तृत रूप है। उन्होंने नाक जैसे संवेदनशील अंग का ऑपरेशन करने से लेकर महिलाओं की डिलीवरी तक का ऑपरेशन किया। इतना ही नहीं उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए भी अपने ग्रन्थ में उपाय बताएं। आज सुश्रुत बेशक शल्य चिकित्सा के जनक के रूप में जाने जाते हो लेकिन इसके अलावा भी उन्होंने दूसरे क्षेत्रों जैसे औषधि और रसायन शास्त्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।